खाते हैं हिन्दी का और गाते अंग्रेज़ी, हिन्दी दिवस बनाम श्राद्ध पक्ष…???


मुनीर अहमद मोमिन 

हिंदी दिवस पर अपने आत्मीय जनों-जिनमें लेखक तथा पाठक दोनों ही शामिल हैं, को हिंदी दिवस की शुभकामनायें। इस अवसर पर केवल हमें यही संकल्प लेना है कि स्वयं भी हिंदी में लिखने बोलने के साथ ही लोगों को भी इसकी प्रोत्साहित करें। एक बात याद रखिये हिंदी गरीबों की भाषा है या अमीरों की यह बहस का मुद्दा नहीं है। बल्कि हम लोग बराबर हिन्दी फिल्मों तथा टीवी चैनलों को लिये कहीं न कहीं भुगतान कर रहे हैं और इसके सहारे अनेक लोग करोड़पति हो गये हैं। आप देखिये हिंदी फिल्मों के अभिनेता, अभिनेत्रियों को जो हिंदी फिल्मों से करोड़ेा रुपये कमाते हैं पर अपने रेडिया और टीवी साक्षात्कार के समय उनको सांप सूंघ जाता है और वह अंग्रेजी बोलने लगते हैं। वह लोग हिंदी से पैदल हैं पर उनको शर्म नहीं आती। सबसे बड़ी बात यह है कि हिंदी टीवी चैनल वाले हिंदी फिल्मों के इन्हीं अभिनता अभिनेत्रियों के अंग्रेजी साक्षात्कार इसलिये प्रसारित करते हैं क्योंकि वह हिंदी के हैं। कहने का तात्पर्य है कि हिंदी से कमा बहुत लोग रहे हैं और उनके लिये हिंदी एक वस्तु मात्र है, जिससे बाजार में बेचा जाये। इसके लिये दोषी भी हम ही हैं। सच देखा जाये तो हिंदी की फिल्मों और धारावाहिकों में आधे से अधिक तो अंग्रेजी के शब्द बोले जाते हैं। इनमें से कई तो हमारे समझ में नहीं आते। कई बार तो पूरा कार्यक्रम ही समझ में नहीं आता। बस अपने हिसाब से हम कल्पना करते हैं कि इसने ऐसा कहा होगा। अलबत्ता पात्रों के पहनावे की वजह से ही सभी कार्यक्रम देखकर हम मान लेते हैं कि हमने हिंदी फिल्म या कार्यक्रम देखा।
            ऐसे में हमें ऐसी प्रवृत्तियों को हतोत्साहित करना चाहिये। हिंदी से पैसा कमाने वाले सारे संस्थान हमारे ध्यान और मन को खींच रहे हैं। उनसे विरक्त होकर ही हम उन्हें बाध्य कर सकते हैं कि वह हिंदी का शुद्ध रूप प्रस्तुत करें। अभी हम लोग अनुमान नहीं कर रहे कि आगे की पीढ़ी तो भाषा की दृष्टि से गूंगी हो जायेगी। अंग्रेजी के बिना इस दुनियां में चलना कठिन है यह तो सोचना ही मूर्खता है। कहने का तात्पर्य यह है कि रोजगार और व्यवहार में आदमी अपनी क्षमता के कारण ही विजय प्राप्त करता है न कि अपनी भाषा की वजह से? अलबत्ता उस विजय की गौरव तभी हृदय से अनुभव किया जाये पर उसके लिये अपनी भाषा शुद्ध रूप में अपने अंदर होना चाहिये। सबसे बड़ी बात यह है कि आपकी भाषा की वजह से आपको दूसरी जगह सम्मान मिलता है। अब मुख्य बात यह है कि आप अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिये कौन सा विषय लेते हैं और याद रखिये सहज भाव अभिव्यक्ति केवल अपनी भाषा में ही संभव है। 

अंत में लार्ड मैकाले की औलादों की हिंदी की एक बानगी- “हिंदी इज आवर नेशनल लैंग्वेज, राष्ट्रीय भाषा… सो, ऑल ऑफ अस शुड प्रमोट हिंदी। यस, वी मस्ट रीड, राइट एंड स्पीक एंड डू आवर ऑल वर्क इन हिंदी। हैप्पी हिंदी डे, जै हिंद”।

हिन्दी दिवस बनाम श्राद्ध पक्ष…???
सन 1950 में 14 सितम्बर को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। तब से प्रत्येक वर्ष इस भाषा के संवर्धन के लिए हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़ा तक मनाया जाता है। आयोजनों में हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी में कामकाज करने का संकल्प लिया जाता है | लेकिन यह सब धरा का धरा ही रह जाता है। वजह स्पष्ट है कि ये सब सच्ची निष्ठा से नहीं, बल्कि दिखावे के लिए किए जाते हैं। इस वर्ष भी सभाएं, समारोह, हिंदी लेखन स्पर्धा, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं हो रही हैं/होंगी, अंग्रेजी की गुलाम मानसिकता से बाहर निकलने का प्रण लिया जाएगा। भले ही इसका प्रतिफल कुछ न मिले, लेकिन कार्यक्रम तो होने ही हैं और होंगे। काबिले गौर बात यह है कि हिंदी के अलावा किसी भाषा का दिवस नहीं मनाया जाता है। यह भी एक संयोग है कि हिंदी दिवस का आगमन श्राद्ध पक्ष के आसपास ही होता है। क्या इससे नहीं लगता कि हम हिंदी का ही ‘श्राद्ध’ मना रहे हैं ? देखा जाए तो हिंदी की दशा हमारे देश के कर्णधारों की विफलता का जीता-जागता नमूना है, क्योंकि भारत के संविधान के भाग 17 अनुच्छेद 343 (1) में स्पष्ट लिखा है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। इतने स्पष्ट निर्देशों के बाद भी आज अंग्रेजी पूरे देश में इतनी हावी है कि उसके सामने हिंदी लाचार नजर आती है। इसके लिए हम भले ही लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को दोष देते रहें, पर सच तो यह है कि इतने शिक्षाशास्त्रियों के इस देश में अभी तक ऐसी शिक्षा नीति नहीं बन पाई, जिससे देश के नागरिकों को अपनी भाषा में पढ़ने की छूट मिल सके। दूसरी ओर, विदेशों में हिंदी भाषा की लोकप्रियता बढ़ रही है। यह सच है कि वर्तमान अंग्रेजी केंद्रित शिक्षा प्रणाली से हम समाज के सबसे बड़े तबके को अपनी भाषा में ज्ञान देने से वंचित कर रहे हैं। उनमें अपनी भाषा के प्रति हीन भावना पैदा कर रहे हैं। यही समय है कि हम गुलामी की मानसिकता से उबरें और अपनी राष्ट्रभाषा को उचित सम्मान दें। हिंदी भाषा का स्वरूप ही अलग है, यह भाषा अत्यंत मीठी और खुले प्रकृति की भाषा है। हिंदी अपने अन्दर हर भाषा को अन्तर्निहित कर लेती है। जिसके चलते जनतांत्रिक आधार पर हिंदी विश्व भाषा है। क्योंकि उसके बोलने-समझने वालों की संख्या संसार में तीसरी है । विश्व के 132 देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ से अधिक लोग हिंदी माध्यम से ही अपना कार्य निष्पादित करते हैं। एशियाई संस्कृति में अपनी विशिष्ट भूमिका के कारण हिंदी एशियाई भाषाओं से अधिक एशिया की प्रतिनिधि भाषा भी कहलाती है।


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