मुंबई। श्री मनमोहन सरल का 91वां जन्मदिन समारोह स्मृतियों और उन स्मृतियों से जुड़ी कृतियों और उनके कृतिकारों को जोड़ने का एक नया ही रास्ता बना गया। सरल जी के 90 साल पूरे हुए थे। यह एक विशेष अवसर था। और कई मित्रों का यह आग्रह भी था कि धर्मयुग परिवार के सदस्यों के कामों का भी जिक्र करके आयोजनों को नया आयाम भी दिया जाए। सो, इस कार्यक्रम में एक ओर जहां धर्मयुग की खट्टी-मीठीं यादें कही-सुनी-गुनगुनाई-मुस्कुराई गयीं, धर्मयुग परिवार के कुछ सदस्यों के जो बहुत भावभीने संदेश आये थे, उन्हें भी सुना-सुनाया गया; सरल जी के सरल और सहज स्वभाव, उनकी कहानियों और उनकी कला समीक्षा को लेकर चर्चा हुई; तो दूसरी ओर अभिलाष अवस्थी की गज़लें भी कार्यक्रम का हिस्सा बनीं। श्री अवस्थी बहुत अच्छे गीतकार और ग़ज़लकार हैं। वे टीवी सीरियल और फ़िल्में भी लिख रहे हैं। वे कुछ समय के लिए महाराष्ट्र हिंदी अकादमी के अध्यक्ष भी रहे हैं। शुरुआत थी, इसलिए थोड़े झिझकते हुए अभिलाष जी ने एक बार जो रौ पकड़ी तो फिर, ऐसा समां बंधा कि इसके पहले बांद्रा के इस पत्रकार नगर में साहित्य की शायद ही ऐसी कोई सघन प्रस्तुति हुई हो। अभिलाष जी की गज़लें और प्रस्तुति दोनों ही लाज़वाब थे।
बाद में मन कसकता रहा, धर्मयुग की याद कार्यक्रमों को यदि यह रंग दिया गया होता तो धर्मयुग को, भारती जी की स्मृति को; और उनसे जुड़े साहित्य और पत्रकारिता के समूचे आभामंडल को पहले ही एक नया आयाम मिल गया होता। श्री हरिवंश जी ने बातचीत में परसों गजब की बात कही थी। उन्होंने कहा था- “हम लोग जो हैं, भारती जी के ही तो बनाये हैं। और जो कर रहे हैं, उसमें धर्मयुग का भी तो एक कॉन्टीनुअशन है। ”सो; अब, यह जो प्रस्तुति हुई है, वह आगे अब शायद इस तरह के सभी आयोजनों के लिए एक मॉडल का काम करे। साहित्य और पत्रकारिता की समूची दुनिया के लिए। और शायद उससे भी आगे, हर तरह के संस्थानों के लिए। कार्यक्रम खूब अच्छा रहा। सरल जी खूब स्वस्थ और प्रसन्न हैं। तीन घंटे लगातार बैठे। उन्होंने बहुत अच्छा महसूस किया। सविता मनचंदा जी ने केक भेजा था। उन्होंने खूब खुशी से केक काटा। थोड़ा खाया भी। लड्डू भी खा लिया। अटेंडेंट्स के मना करने के बावजूद नाश्ता भी किया। उनकी प्रसन्नता जिन्होंने देखी, मित्रो, वह एक अनुभव है। मेरी विनती है, पुष्पा जी और उन्हें लेकर आगे जो कार्यक्रम हों, उनमें धर्मयुग के सभी लोग जरूर शामिल हों। जीवन के कुछ बहुत महत्वपूर्ण वर्ष उनके साथ हम लोग कुछ मिनटों में ही एक बार फिर जी लेते हैं। वहां उपस्थित धर्मयुग परिवार के हम कुछ सदस्यों सुश्री सुदर्शना द्विवेदी, मैंने (ओम प्रकाश), अभिलाष अवस्थी, हरीश पाठक, विनीत शर्मा; पत्रकार रमा कपूर और दैनिक जागरण कानपुर से आये पत्रकार मित्र आशीष पाल ने उन्हें शाल ओढ़ाया, पुष्प गुच्छ दिए और सविनय प्रणाम किया; और उनसे आशीष लिया। कार्यक्रम बहुत जीवंत, बहुत अद्भुत रहा।
इसी क्रम में धर्मयुग परिवार के एक सदस्य जैसे ही रहे, प्रख्यात कवि नन्द चतुर्वेदी का भी जन्मदिन था। उनकी स्मृति को भी प्रणाम किया गया।
सो, सरल जी, जीवैं आप सौ साल। हम सबकी प्रार्थना है यह।
बाकलम ओमप्रकाश
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