केडीके न्यूज़ नेटवर्क
यह सर्वविदित है कि किसी भी शहर का विकास वहां की स्थानीय स्वायत्त संस्था द्वारा ही होता है और वही लोकतांत्रिक व्यवस्था में विकास का माध्यम अथवा मुख्य धुरी होती है। इस तरह चाहे केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकार उसके द्वारा किसी प्रकार के विकास का धन महानगरपालिका, नगरपालिका, जिला परिषद अथवा ग्राम पंचायत आदि के पास ही आता है। इस तरह भिवंडी शहर के विकास का माध्यम चाहे तब की नगरपालिका रही हो या अब की महानगरपालिका हो, उसी के जरिए ही हुआ है। और विकास का नारा देने वाले विलास पाटिल का लगभग 10 वर्षों तक बतौर नपा का नगराध्यक्ष तथा 10 वर्षों, यहां तक कि मौजूदा काल तक प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से बतौर महापौर मनपा पर कब्ज़ा रहा है। इसलिए शहर के लोग अपनी नंगी आंखों से खुद देख सकते हैं कि एकाध बार छोड़कर लगभग 20 वर्षों तक स्थानीय नपा मनपा प्रशासन पर काबिज रहने के बावजूद विलास पाटील ने शहर का कितना और कैसा विकास किया है।
हर साल करोड़ों रूपए खर्चने के बावजूद शहर की सड़कों की दुर्दशा, बजबजाते चेंबर विहीन गटर-नालों की दशा, मनपा स्कूल और अस्पतालों की दशा, उड़ान पुल की दशा गंदगी के चलते नाना प्रकारों के संक्रामक रोगों के फैलाव, पेयजल की किल्लत सहित अन्य तमाम तरह की दुश्वारियों और परेशानियों के अलावा लोगों के जन जीवन से जुड़ी अन्य तमाम तरह की बुनियादी सुविधाओं के अभाव का जिम्मेदार कौन? हर साल बारिश के दौरान साक्षात नर्क का स्वरूप धारण करने वाले शहर का जिम्मेदार कौन? बिना काम किए मनपा का खजाना खाली करने का जिम्मेदार कौन? सड़क निर्माण और मरम्मत गटर नाला-नाली के निर्माण और मरम्मत के ज्यादातर कामों का ठेका कौन लेता रहा है, जो आज विकास की बात कर रहा है। हां विलास पाटील ने नगरसेवकों का विकास जरूर किया है। फटीचर से फटीचर नगरसेवकों को लखपति, करोड़पति और सब ठेकेदार अथवा ठेकेदार बनाकर उनका विकास किया है। इससे आम जनता का क्या? आम जन के हिस्से में तो केवल और केवल त्रास ही त्रास और नाना प्रकार की दुश्वारियां और परेशानियां ही आई हैं। इसलिए विकास का खोखला नारा विलास के मुंह से वैसा ही लग रहा है जैसे कोई कसाई अहिंसा का उपदेश दे या कोई गंजा बाल बढ़ाने का दावा करे।
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