भिवंडी के राजनीतिक दल और यहां के मतदाता ध्यान दें: मुसलमानों का कोई ठेकेदार नहीं, न राजनीतिक दल न ही धार्मिक नेता, अब मुसलमान मेहराब व मिंबर से किसी आदेश हेतु न प्रतीक्षित है और न किसी इमाम या हजरत के “फतवे”, व न किसी सज्जादा नशीन के फरमान का बंधुआ


अब्दुल हसीब जामयी 
 जो लोग मुसलमानों को कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, शिवसेना, समाजवादी, एमआईएम अथवा किसी अन्य पार्टी का वोट बैंक मानते हैं। वे वास्तव में मुसलमानों और उनकी बुद्धि व समझ का अपमान कर रहे हैं। क्या मुसलमानों में अपने लिए अच्छे और बुरे में फर्क करने की क्षमता नहीं है? उन्हें वोट किसे करना है, ये बताने के लिए क्या बाहर से लोग आएंगे? अगर मुसलमानों में ऐसी क्षमता नहीं है तो क्या दलितों में है? क्यों एमवाई (M Y) समीकरण के बावजूद बहुसंख्यक यादव समाज राजद/समाजवादी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवारों को वोट नहीं देते? इनके बारे में कोई सवाल नहीं पूछता। हम ये चाहते हैं कि कोई भी पार्टी मुसलमानों के लिए कोई खास वादा न करे। विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन धर्म और जाति के आधार पर नहीं होता। शिक्षा के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले स्कूल, कॉलेज, सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अच्छे अस्पताल, क्लीनिक और डिस्पेंसरी। आम नागरिकों विशेषकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए सघन सुरक्षा व्यवस्था और सीसीटीवी कैमरे, अच्छी सड़कें, सार्वजनिक परिवहन, सड़क, बिजली और सीवरेज को व्यवस्थित करने और पूरा करने का प्रण करने सहित जीतने के बाद अपने वादों को पूरा करें तो जनता ख़ुद-ब-ख़ुद आपके साथ होगी। 

       देश की तथाकथित सेक्युलर पार्टियां अपने मतदाताओं को ऐसे कच्चे धागे से क्यों बांधती हैं कि वे उसे तोड़कर भाग जाते हैं। मुसलमानों का कोई ठेकेदार नहीं है। न राजनीतिक दल और न ही धार्मिक नेता। अब मुसलमान मेहराब और मिम्बर से न किसी आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है और न ही वह किसी इमाम या हजरत के “फतवे” सहित वह इस मामले में किसी सज्जादानशीन अथवा गद्दीनशीन के फरमान से ही बंधा है। वह संविधान में दिए गए वोट के अधिकार का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करना चाहता है। लेकिन इससे पहले वह उम्मीदवार और पार्टी का रिपोर्ट कार्ड भी देखना/पढ़ना चाहेगा। वक्त बदल गया है अब आप किसी पार्टी अथवा उम्मीदवार को रोकने के बजाय अपने कारनामों और सच्चे वादों से मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करें। चुनाव लड़ने या किसी दूसरे को मतदान करने से आप किसी को रोक नहीं सकते। यदि दम है तो मतदाताओं को ‘कन्विंस’ (convince) करें, कि वह आपके पक्ष में मतदान करे। 


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